संघर्ष की भूमि पर खड़ा है बाबा का साहित्य

बाबा नागार्जुन की जन्मशती पर रांची दूरदर्शन द्वारा आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी 'नागार्जुन का रचना संसारÓ के पहले दिन गुरुवार को सीसीएल के विचार कक्ष में रचना और कविताओं को लेकर लंबी चर्चा चली। वरीय पत्रकार हरिवंश से लेकर शीन अख्तर, अरुण कमल, विश्वनाथ त्रिपाठी, विजय बहादुर सिंह, मदन कश्यप, रामदयाल मुंडा, वीपी केशरी, रविभूषण, विष्णु नागर सहित दर्जनभर से ऊपर कवि-समालोचकों ने नागार्जुन के रचना संसार पर हर ओर-छोर से दृष्टि डाली। शीन अख्तर ने शुरुआत की और बहस की जमीन हरिवंश ने तैयार की। कहा, साहित्य-संस्कृति के बिना कारपोरेट कंपनियां भी नहीं चल सकतीं। इसके बाद दिल्ली से आए वरिष्ठ आलोचक डा. विश्वनाथ त्रिपाठी ने कई कोणों से नागार्जुन को देखने की कोशिश की। बताया कि वे जनकवि थे। उनकी प्रतिबद्धता आम जनता के प्रति थी। अध्यक्षता करते हुए 'आलोचनाÓ के संपादक व कवि अरुण कमल उनकी कविता, यात्रावृत्तांत, उपन्यास आदि पर चर्चा करते हुए यह स्थापित करने का प्रयास किया कि बाबा का संपूर्ण साहित्य संघर्ष की भूमि पर खड़ा है।
 बताया, सरहपा से होते हुए कबीर, नजीर अकबराबादी, मुकुटधर पांडेय, निराला के नए पत्ते की पूरी परंपरा नागार्जुन में मौजूद है। कमल ने बहुत विस्तार से अपने विचार रखते हुए उनकी संस्कृत, बांग्ला, मैथिली कविताओं की प्रासंगिकता उद्धरण के साथ रेखांकित की। उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि वे हिंदी के ऐसे जादूगर हैं, जहां भाषा के कई रूप मौजूद हैं। तुम खिलो रात की रानी और मंत्र कविता से लेकर बाकी बच गया अंडा तक...।
निष्कर्ष यह कि वे निरंतर प्रतिपक्ष के कवि थे। कमल ने उनके उपन्यास बलचनमा के बारे में बताया कि इसमें गोदान से आगे की कथा है, जहां भूमिहीन खेतिहर मजदूर हैं। बाबा बटेसर नाथ, जमनिया क बाबा की भी चर्चा की। पहले सत्र का संचालन नाटककार विनोद कुमार ने किया।
दूसरा सत्र नागार्जुन की कविताओं को समर्पित था। रविभूषण ने विषय प्रवर्तन किया। अपने 40 मिनट के व्याख्यान में नागार्जुन के अड़सठ सालों की रचनायात्रा की चर्चा करते हुए कहा कि नागार्जुन की कविताओं के कई पाठ हो सकते हैं। दलित, स्त्री, आदिवासी, उत्तर आधुनिक आदि-आदि। किसी ने प्रश्न उठाया था कि झारखंड में नागार्जुन क्यों? रविभूषण ने बड़ा सटीक जवाब दिया। कहा, नागार्जुन ने मुंडा, उरांव को तब याद किया जब उनकी चर्चा कहीं नहीं थी। पद्मश्री डा. रामदयाल मुंडा ने राहुल के बाद नागार्जुन को सबसे बड़ा यायावर बताया। मौके पर एक मुंडारी गीत भी सुनाया, जिसका आशय था सब एक हैं। सबको समन्वित करो। भोपाल से आए ओम भारती ने परंपरा और आधुनिकता के बरक्स उनकी कविताओं को देखा-परखा। वहीं, कवि व द पब्लिक एजेंडा के साहित्य संपादक मदन कश्यप ने व्यापक जन सरोकारों का उल्लेख किया। मुुंबई से आए आलोचक विजय कुमार ने नागार्जुन को फकीर और साधु कहा। कई तरह के अंत की घोषणा के बरक्स विजय ने नागार्जुन की कविताओं को समझने की कोशिश की। बीपी केशरी ने हिंदी कवियों और आलोचकों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि आप गरीबों पर भी नजर डालिए। नागार्जुन की परंपरा को आगे बढ़ाइए। 'वागर्थÓ के संपादक व विशिष्ट अतिथि विजय बहादुर सिंह, जो बाबा के बहुत निकट रहे हैं, बहुत स्पष्ट कहा कि बाबा को कवि-लेखक के दायरे से बाहर निकल कर देखने की जरूरत है। किताबी तौर पर बाबा को नहीं देखा जा सकता। इससे हम खंडित नागार्जुन को देख पाएंगे। समग्र रूप से देखने के लिए उनकी हर कविता को पढ़ा जाना चाहिए। अध्यक्षीय उद्बोधन विष्णु नागर ने दिया। इस सत्र का संचालन माया प्रसाद ने किया। इसके पूर्व सभी अतिथियों को पुष्पगुच्छ व शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।   

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