आजादी की लड़ाई में गंवा दी अपनी जमीन

मोहनदास करमचंद गांधी पहले नेता थे, जिन्होंने आजादी के आंदोलन की शुरुआत करने से पहले पूरा देश का भ्रमण किया। इसके बाद उन्होंने अपनी रणनीति बनाई। मैदानी इलाकों से एकदम अलग-थलग रहने वाले रांची की पठार पर भी उनके कदम पड़े। यह वाकया 1920 का है। असहयोग आंदोलन शुरू हो गया था। वे देश का दौरा कर रहे थे। इसी क्रम में वे रांची भी आए। गांधीजी जब रांची आए तो यहां उनकी मुलाकात टाना भगतों से हुई। इसका श्रेय डा. राजेंद्र प्रसाद को जाता है। टाना भगत भी छह साल पहले ही अस्तित्व में आए थे। वे गांधी के व्यक्तित्व से इस कदर प्रभावित हुए कि फिर गांधी के ही होकर ही रह गए।
श्री नारायणजी ने 'आदिवासीÓ के  गांधी अंक, 2 अक्टूबर, 1969 में लिखा है, 'टाना भगत महात्मा गांधी के अनन्य भक्त बन गए। आजादी की लड़ाई में टाना भगतों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। कितने जेल गए, हजारों की जमीन नीलाम हुई, कितने जेल में खेत आए। स्वराज्य का संवाद सुनने के लिए कांग्रेस अधिवेशन में सम्मिलित होने के लिए सैकड़ों पांव पैदल गया, कानपुर, बेलगांव और कोकोनाडा गए।
1922 के गया कांग्रेस में करीब तीन सौ टाना भगतों ने भाग लिया। ये रांची से पैदल चलकर गया पहुंचे थे। 1940 में रामगढ़ कांग्रेस में इनकी संख्या तो पूछनी ही नहीं थी।
  पांच अक्टूबर, 1926 को रांची में राजेंद्र बाबू के नेतृत्व में आर्य समाज मंदिर में खादी की प्रदर्शनी लगी थी तो टाना भगतों ने इसमें भी भाग लिया। 1934 में महात्मा गांधी हरिजन-उत्थान-आंदोलन के सिलसिले में चार दिनों तक रांची में थे। इस समय भी टाना भगत उनके पास रहते थे। साइमन कमीशन के बॉयकाट में टाना भगत भी शामिल थे। टाना भगतों की जमीन तो अंगरेजी सरकार ने पहले ही नीलाम कर दी थी, फिर भी वे आजादी के आंदोलन से पीछे नहीं हटे, मार खाई, सड़कों पर घसीटे गए, जेल की यातनाएं सही, फिर भी गांधीजी की जय बोलते रहे, अंतिम दम तक। देश जब आजाद हुआ तो टाना भगतों ने अपनी तुलसी चैरा के पास तिरंगा लहराया, खुशियां मनाईं, भजन गाए। आज भी टाना भगतों के लिए 26 जनवरी, 15 अगस्त व दो अक्टूबर पर्व के समान है। हरवंश भगत ने 'पंद्रह अगस्त और टाना भगतÓ लेख में बताया है कि '15 अगस्त को टाना भगत पवित्र त्यौहार के रूप में मनाते हैं। इस दिन टाना भगत किसी प्रकार खेतीबाड़ी आदि का काम नहीं करते। प्रात: उठकर ग्राम की साफ-सफाई करते हैं। महिलाएं घर-आंगन की पूरी सफाई करती हैं। स्नानादि के बाद समूह रूप में वे राष्ट्रीय गीत गाकर राष्ट्र-ध्वज फहराते हैं। अभिवादन करते हैं। स्वतंत्र भारत की जय, महात्मा गांधी की जय, राजेंद्र बाबू की जय, जवाहर लाल नेहरू की जय तथा सभी टाना भगतों की जय का नारा लगाते हैं। गांव में जुलूस निकालते हैं। प्रसाद वितरण भी करते हैं। अपराह्न आम सभा होती है। सूत काता जाता है और आपस में प्रेम और संगठन को दृढ़ करने की चर्चा होती है।Ó पर, आजादी के ये अहिंसक सिपाही आज भी अपनी जमीन वापसी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

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